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Sunday 14 May 2017

विज्ञानिओ का दावा : कुत्ते जितना ही सूंघ सकती है इंसान की नाक !

अब तक  माना जाता  रहा है की इंसान के सूंघने की शक्ति जानवरो के मुकाबले काफी  कम होती है। , लेकिन  अमेरिका के   न्यू जर्सी की " रतगरस यूनिवर्सिटी (rutgers university) "  का कहना है की  इंसान की सूंघने की शक्ति कुत्ते, चूहे  व अन्य जानवरो से काम नहीं होती है। 



                                                                       गुरुवार को प्रकाशित हुए एक रिव्यू में न्यूरोसाइंटिस्ट(Neuroscientist) " जोहन पी मैकगैन(John McGann) " ने बताया की उन्होंने कैसे इस मिथक को तोडा की इन्सान कुत्ते या फिर किसी और जानवर जितना नहीं सूंघ सकता। " जोहन पी मैकगैन(John McGann)" ने बताया की , " इन्सान सूंघने में काफी अच्छे होते है , और इन्सान अबतक जितना बताया जाता था उससे ज्यादा सूंघ सकते है। "



                         

जानवरो के दिमाग में मौजूद :-
" ओलफैक्टरी बल्ब(olfactory bulb) "

" पोल ब्रोंका(Paul Broca) "


                                                                                          


                                      इस मिथक की शुरुआत 19 वी सदी में एक  फ़्रेन्च फिजिशियन " पोल ब्रोंका(Paul Broca) "  ने की थी। " पोल ब्रोंका(Paul Broca) "  इन्सानी दिमाग शोध करते थे और बताते थे की वह  जानवरो से कैसे अलग है। उन्हों ने तर्क दिया की  जानवरो के दिमाग में मौजूद बड़े  " ओलफैक्टरी बल्ब(olfactory bulb) " (दिमाग में बल्ब के आकर का एक हिस्सा) , उन्हें दूर तक और ज्यादा सुघने में मदद करते है, जबकि  इन्सानो के दिमाग का आगे का  बड़ा हिस्सा -"फ्रंटल लोब (frontal lobe)" उन्हें हर तरह की गंध से दूर रखने में मदद करता है। और  दूसरे विज्ञानिको ने जानवरो की सूंघने की क्षमता को टेस्ट  किए बिना ही  इनकी थ्योरी को और सरल बना दिया। इसके बाद 1924 में एक महत्वपूर्ण टेक्सबूक में बताया गया की इन्सानो की विचार करने की  क्रांति के चलते हुए उनके दिमाग  के " ओलफैक्टरी बल्ब(olfactory bulb) " सिकुड़ गए और लगभग बेकार हो गए। 


फ्रंटल लोब rontal lobe

जोहन पी मैकगैन(John McGann)

                                                                            











                                                      " जोहन पी मैकगैन(John McGann)" का कहना है की " अलग अलग पर्यावरण में जानवरो को अलग अलग समस्याए होती है  जिलके मुताबिक उन्हें ढलना होता है। " उनका कहना है की हम अपनी नाक  से काफी कुछ कर सकते है। कुत्ते की तरह हम भी खूश्बू या गंध  को फॉलो (FOLLOW)  करते  हुए  निशान तक पहुँच सकते  है। 
                                                                                         
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