हमें कोई कहे की ६ वा प्रलय आ चुकाहै तो हम हस पड़ेंगे। . क्योकि हमारी सोच प्रलय के बारे में ये है की सब कुछ एक बार में ही होने वाले महाविनाश की है ,,,, जैसे की भूकंप , लगुग्रह या धूमकेतु का पृथ्वी पे गिरना >>आदि बाते पर ये सच नहीं है। क्यों की प्रलय कभी भी एक बार में नहीं आ जाता वो धीरेधीरे आता है। ,,, और वो 1 लाख सालो से भी ज्यादा चलता रहता है। क्योकि जैसी की कई प्रजातियों की लुप्त होने की बात से ही साइंटिस्ट्स ने यह प्रलय शुरू हो गया है उसकी और इशारा कर दिया है। जैसेकि शेर , चीता आदि प्रजातीयॉ। और यह कोई नए बात नहीं है क्यों की ऐसा विनाश पृथ्वी ने पिछले ५४ करोड़ सालोमे ५ बार महसूस है।
ऐसे पांच प्रलयो में से हर एक में ओसतन पोन भाग की जीवो का एक ही कतार में विनाश हो गया था । हम जानते है की पृथ्वी उत्त्पत्ति ४.५ अबज वर्ष पहले हुए थी। और उस वक्त आसमान में से हमारी पृथ्वी पर पिंडो का मार लगातार होता रहता था। पर वो ३. ८ अबज वर्ष पहले बंध हुआ था। और जैसे जैसे पृथ्वी की इकोलॉजी [परिस्थिति] में बदलाव आता गया वैसे वैसे सूक्ष्म जीवो की भी उत्त्पत्ति होती गए और बाद में उससे अनुकूलित होते होते समय की साथ साथ नये जीवो की भी उत्त्पत्ति होती गयी। और जो पर्यावरण या फिर वातावरण या परिस्थिति के साथ अनुकूलित न होपायी वह जिवो का विनाश हो गया। जीसाकि बजह से ९९% प्रजातियों को विनाश हो गया था और वह आज हमें अशमियो के रूप में जमींन में गड़ी दफन मिलती है।
पर अमरीका के ''लू बरक़बे '' में स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ़ केलिफोर्निया के एक अभ्यास और ''नेचर '' नामक एक सामायिक में पेश किया है की ५४ करोड़ साल में मेमल्स और दूसरे जिव की प्रजातीय कहा है विनाश की तारीख में तो उससे एक आशा की दिख रही थी क्यों की वह लुप्त होने में शायद १००० साल
लगेंगे फिर भी ५० % ही लुप्त होंगे।
पर अगर हम आज की तारीख में देखे तो ये विनाश का दर बढ़ भी सकता है क्यों की अगर जिव भी अनुकूलित हो जाय प्रकृति के मुताबिक फिर भी इंसानो के पॉलुशन , शहर , और बढ़ती आबादी को लेकर इस पृथ्वी पर विनाश की होने वाली दर को कोई धीमा नहीं कर सकता।
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