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Tuesday 23 May 2017

30 सेकंड के फर्क ने मिटा दिआ था डायनासोर के युग का वजूद !

डायनासोर के युग के अंत के लिए कहा जाता है की  एक बहुत बड़ा एस्टेरोइड धरती से टकराया था।  जिससे पैदा हुआ विस्फोट ने धरती पे  जानवरोका वजूद ख़त्म कर दिया था। लेकिन इस विस्फोट की टाइमिंग को लेकर बीबीसी न्यूज़ ने  बड़ा खुलासा किआ है की जिस एस्टेरोइड ने  डायनासोर का अंत किआ था , अगर वह धरती से 30 सेकंड जल्दी या 30  सेकंड देर बाद टकराता  तो उसका असर  धरती पे इतना कम होता की डायनासोर ख़त्म नहीं होते।


                                                                      ऐसा इसलिए क्योकि ३० सेकंड की देरी या जल्दी गिरने की स्थिति में  वह जमीन की बजाय समुन्द्र में गिरता। यह एस्टेरोइड 6.6 करोड़ साल पहले मेक्सिको के Yucatan   प्रायद्वीप से   टकराया था जिससे वह 111 मिल चौड़ा और  20 मिल गहरा  गड्डा बन गया था।  गड्डे की जाँच की तो  वहा की चट्टान में सल्फर कंपाउंड पाया गया था। एस्टेरोइड की टक्कर से यह चट्टान वास्प में  बदल गयी थी जिसने हवा में धूल का बादल बना दिया था। इसके परिणाम स्वरूप धरती नाटकीय रूप से ठंडी हो गयी थी। और पुरे एक  दशक तक ऐसी स्थिति में रही।  और उन हालत में अधिकतर जीवो की मौत हो गयी थी। 

मेक्सिको के Yucatan   प्रायद्वीप 
                                                                     
                                      और अनुमान के मुताबिक 9 मिल के  आकर और 40 हजार मिल प्रति घंटे की रफ्तार वाला यह विनाशक एस्टेरोइड कुछ सेकन्ड  जल्दी या देर से गिरा होता तो वह जमीन की बजाय अटलांटिक या प्रशांत महासागर के गहरे पानी में गिरता और यदि   ऐसा होता तो समुद्र का पानी भाप बनकर उड़ गया होता , और इसके फल स्वरुप डायनासोरो को कम नुकसान पहुँचता। 

यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सास में  जिओफिसिक्स के प्रोफेसर सिन गुलिक ने प्रोफेसर जोआन मॉर्गन
                                                                 
     यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्सास में  जिओफिसिक्स के प्रोफेसर सिन गुलिक ने प्रोफेसर जोआन मॉर्गन के साथ मिलकर उस जगह की ड्रिलिंग का काम आयोजित किआ था ,  जहा वह एस्टेरोइड टकराया था। वह  कहते है की "  वह बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण जगह पे गिरा था " प्रो फेसर ने बताया की  100 बिलियन  टन सल्फेट वातावरण में  फैल गया। और यह धरती को  ठंडा कने और जीवन को काफी हद  तक ख़त्म  करने के लिए  काफी था। 
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Sunday 14 May 2017

विज्ञानिओ का दावा : कुत्ते जितना ही सूंघ सकती है इंसान की नाक !

अब तक  माना जाता  रहा है की इंसान के सूंघने की शक्ति जानवरो के मुकाबले काफी  कम होती है। , लेकिन  अमेरिका के   न्यू जर्सी की " रतगरस यूनिवर्सिटी (rutgers university) "  का कहना है की  इंसान की सूंघने की शक्ति कुत्ते, चूहे  व अन्य जानवरो से काम नहीं होती है। 



                                                                       गुरुवार को प्रकाशित हुए एक रिव्यू में न्यूरोसाइंटिस्ट(Neuroscientist) " जोहन पी मैकगैन(John McGann) " ने बताया की उन्होंने कैसे इस मिथक को तोडा की इन्सान कुत्ते या फिर किसी और जानवर जितना नहीं सूंघ सकता। " जोहन पी मैकगैन(John McGann)" ने बताया की , " इन्सान सूंघने में काफी अच्छे होते है , और इन्सान अबतक जितना बताया जाता था उससे ज्यादा सूंघ सकते है। "



                         

जानवरो के दिमाग में मौजूद :-
" ओलफैक्टरी बल्ब(olfactory bulb) "

" पोल ब्रोंका(Paul Broca) "


                                                                                          


                                      इस मिथक की शुरुआत 19 वी सदी में एक  फ़्रेन्च फिजिशियन " पोल ब्रोंका(Paul Broca) "  ने की थी। " पोल ब्रोंका(Paul Broca) "  इन्सानी दिमाग शोध करते थे और बताते थे की वह  जानवरो से कैसे अलग है। उन्हों ने तर्क दिया की  जानवरो के दिमाग में मौजूद बड़े  " ओलफैक्टरी बल्ब(olfactory bulb) " (दिमाग में बल्ब के आकर का एक हिस्सा) , उन्हें दूर तक और ज्यादा सुघने में मदद करते है, जबकि  इन्सानो के दिमाग का आगे का  बड़ा हिस्सा -"फ्रंटल लोब (frontal lobe)" उन्हें हर तरह की गंध से दूर रखने में मदद करता है। और  दूसरे विज्ञानिको ने जानवरो की सूंघने की क्षमता को टेस्ट  किए बिना ही  इनकी थ्योरी को और सरल बना दिया। इसके बाद 1924 में एक महत्वपूर्ण टेक्सबूक में बताया गया की इन्सानो की विचार करने की  क्रांति के चलते हुए उनके दिमाग  के " ओलफैक्टरी बल्ब(olfactory bulb) " सिकुड़ गए और लगभग बेकार हो गए। 


फ्रंटल लोब rontal lobe

जोहन पी मैकगैन(John McGann)

                                                                            











                                                      " जोहन पी मैकगैन(John McGann)" का कहना है की " अलग अलग पर्यावरण में जानवरो को अलग अलग समस्याए होती है  जिलके मुताबिक उन्हें ढलना होता है। " उनका कहना है की हम अपनी नाक  से काफी कुछ कर सकते है। कुत्ते की तरह हम भी खूश्बू या गंध  को फॉलो (FOLLOW)  करते  हुए  निशान तक पहुँच सकते  है। 
                                                                                         
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Saturday 13 May 2017

मानव शरीर के बारे में अन्जाने " 10 फैक्ट्स " !

आप अपने शरीर के बारे में क्या जानते है ?? .. अपने शरीर के वजन के बारे में या फिर अपनी  ऊंचाई  ... !! या ज्यादा से ज्यादा तो अपने ब्लड ग्रुप के बारे में शायद आप जानते होंगे। ... लेकिन आज आप इस ब्लॉग में पढ़ेंगे कुछ ऐसी 10  अनजानी बाते जिनके बारे में शायद अपने कभी सोचाभी नहीं होगा। 

                           


1. मानव शरीर में सबसे बड़ी हड्डी उरोस्थि(femur)  है। यह व्यक्ति को अपने शरीर के वजन से 30 गुना        ज्यादा  वजन उठाने में मदद  करता है। 


2 . यदि किसी  इन्सान के DNA को खोल दिया  जाय तो  तो वे 10 अरब (billion) माइल तक उसे लंबा
      किया जा सकता है  जोकि यह  अंतर  पृथ्वी से प्लूटो ग्रह तक का होगा। 





3 . मानव के  नाक और कान कभी बढ़ने से रुकते नहीं है  यानिकी , जीवनभर  बढ़ते रहते है। 

4 . दुनिया  में  लोगो की संख्या की  तुलना में मानव मुँह में अधिक बैक्टीरिया होते है। 





5 . शरीर  में जबान 0. 0015 सेकंड्स में स्वाद का पता लगा सकती है , जोकि आँखो की झपकी से भी             ज्यादा तेज है। 



6 . मानव अपने जीवनकाल में   25,000  क़्वार्टस (quarts) लार पैदा करता है , जो की दो स्विमिंग पूल को      भरने जितना है।







7 . मानव मस्तिष्क एक 10 वॉल्ट के  प्रकाश के बल्ब से भी ज्यादा शक्ति का उपयोग करता है !






8. मानव का ह्दय हर साल 35 लाख बार धड़कता है। 



9. हर सेकंड हमारे मस्तिष्क में  100,000 रासायनिक प्रक्रियाए होती है। 




10 . सिर्फ एक दिन में हमारा खून 19,312 किलोमीटर की दुरी तय करता है। 



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Wednesday 10 May 2017

विज्ञानिओ ढूंढ लिया की :क्यों बुध अँधेरे वाला ग्रह है ?

नया अध्ययन यह दिखा रहा है की बुध की मूल परत में मौजूद कार्बन की बजह से बुध पर अँधेरा दीखता है। MESSENGER मिशन से मिला डेटा इसका समर्थन करता है। 


मेसेंजर(messenger) मिशन

                                                                                    

                                    आप यह सुनकर हैरान होंगे की सूर्य के निकट ग्रह की बेहद अँधेरी सतह है। बहुत लम्बे समय से बुध पे सूर्य की रौशनी की कमी ने विज्ञानीयो को चकरा दिया था। बुध ग्रह की सतह लौहे (IRON -RICH) की समृद्ध सामग्री की नहीं बनी है ,  जिसे अँधेरा करने वाला एक "डार्कनिंग एजेंट " कहा  जाता है  !! ,,  तो बुध गृह को क्या बहुत अँधेरे वाला बनाता है ???



बुध गृह की सतह की तस्वीर जो की मेसेंजर(messenger) मिशन ने ली थी 

                                                       "जोहन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय  (JOHN HOPKINS UNIVERSITY)"  के नए अध्ययन का दावा है की "कार्बन(CARBON)" बुध ग्रह के अंधेरेपन के लिए जिम्मेदार है , जो की बुध गृह की प्राचीन उत्त्पत्ति के समय से मौजूद है। 




 पेट्रिक पेप्लोस्की (patrick peplowski)

                                                                   पेट्रिक पेप्लोस्की (patrick peplowski) जो की  ,"जोहन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय  (JOHN HOPKINS UNIVERSITY)" में एप्लाइड फिजिक्स  विभाग  में है और उनकी टीम ने  बुध ग्रह पर कार्बन के संचय (accumulation)  का  अध्ययन करने  के लिये MESSENGER मिशन  के डेटा का इस्तेमाल किया था और  अध्ययनों के पहले विज्ञानिओ ने प्रस्तावित किया था की : कार्बन सौर्य मंडल में आनेवाले धूमकेतु(comet) से आया था। 


मूल प्राचीन भूपटल (crust) : -

बुध ग्रह की सतह 

                                                                 जब बुध अपनी प्रारंभिक अवस्थामे था।, तो ग्रह के अधिकांश भाग में पिग्ले  हुए  मैग्मा का महासागर शामिल था। विज्ञानिओ का मानना है की , जैसे इस मेग्मा को ठंडा किया जाता है  तो , मिनरल्स  सख्त होकर  डूब जाते। और ग्रेफाइट का मूल प्राचीन भूपटल  बना होगा।  
बुध ग्रह की सतह 
                                                                  सतह पर प्रचुर मात्रा में कार्बन की खोज से पता चलता है की  बुध की मूल प्राचीन सतह , ज्वालामुखीय चट्टानों में  मिल गयी होगी और वो  उत्सर्ग(ejecta)  को  प्रभावित  करके  आज हम जिस सतह को देखते है उसे बनाती  है। और यह परिणाम मेसेंजर  मिशन की अभूतपूर्व सफलता को  दिखाता  है। 

                                                                                       
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Monday 8 May 2017

5 मिनिट में सूर्य की 1500 तस्वीरें लेने वाले राकेट का प्रक्षेपण किया NASA ने !!

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने कहा  है की पृथ्वी की सतह से करीब  320 किलोमीटर की ऊंचाई से पांच मिनिट में सूर्य की 1500 तस्वीरें  लेने में सक्षम एक राकेट का सफल  प्रक्षेपण किया था। नासा के अनुसार सूर्य के निकट के गतिशील क्षेत्रो के सेकंड के भीतर होनेवाले परिवर्तन की निगरानी के लिए  रैपिड एकवेजेशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ एक्सपेरिमेंट(Rapid Acquisition Imaging Spectrograph experiment (RAISE)) की रूप रेखा तैयार की गयी है। 

                                                 

रैपिड एकवेजेशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोग्राफ एक्सपेरिमेंट(Rapid Acquisition Imaging Spectrograph (RAISE))

"सोलर डायनामिक्स ऑब्जर्वेटरी (SDO -solar dynamics observatory)"
                                                                         नासा के "सोलर डायनामिक्स ऑब्जर्वेटरी (SDO -solar dynamics observatory)" और "सोलर टेरेस्ट्रियल रिलेशन्स ऑब्जर्वेटरी(Solar TErrestrial RElations Observatory (STEREO)" जैसे के मिशन सूर्य का लगातार अध्ययन करते है लेकिन वहा हो रहे परिवर्तनों को समझने के लिए सूर्य के कुछ हिस्से के सूक्ष्म अवलोकन की आवश्यकता होती है। इसी को ध्यान  में रखकर इस मिशन को तैयार किया गया है। 
   

"सोलर टेरेस्ट्रियल रिलेशन्स ऑब्जर्वेटरी(Solar TErrestrial RElations Observatory (STEREO)"
"सोलर टेरेस्ट्रियल रिलेशन्स ऑब्जर्वेटरी(Solar TErrestrial RElations Observatory (STEREO)"


                                                                              और आपको एक और बात बता दे की , सूर्य पृथ्वी से लगभग 14.90 करोड़ किलोमीटर की दुरी  पर है। नासा के अनुसार , सूर्य की  सतह का ताप महज 5500 डिग्री  सेल्सियस  है , जबकि  उसके वातावरण का तापमान 20 लाख डिग्री सेल्सियस है। "लाइव  साइंस(live science)"  की रिपोर्ट के अनुसार , वैज्ञानिक यह भी जानना चाहते है , की सौर हवाओ को उनकी गति कैसे मिलती है ? और इस मिशन से यह भी पता चलेगा की सूर्य कईबार अधिक ऊर्जा वाले कण क्यों उत्सर्जित करता है ?,जो की अंतरिक्षयात्रिओ और अंतरिक्षयानो के लिए खतरा पैदा करते है। 
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Sunday 7 May 2017

नये सुपर टेलिस्कोप - स्पेसका वो नजारा दिखाएंगे जो पहले कभी नहीं देखा होगा !

कॅनेडा(CANADA ),चीन ,जापान,भारत और अमरीका सहित अंतरराष्ट्रीय संघ  1.5  अबज डॉलर की अनुमानित  लागत पर  "तीस मीटर के टेलिस्कोप"(THIRTY METER TELESCOPE-TMT ) का निर्माण कर  रहा है। 

तीस मीटर  टेलिस्कोप"(THIRTY METER TELESCOPE-TMT )

                                         "तीस मीटर के टेलिस्कोप"(THIRTY METER TELESCOPE-TMT ) का प्राथमिक दर्पण निश्चित रूप से  तीस मीटर व्यास का  है। इसमें 492  हेक्सागोन (HEXAGONS)  सेगमेंट डिज़ाइन(SEGMENTED DESIGN) में  है , हर एक 1.4 मीटर के  व्यास (DIAMETER) का है।


केक टेलिस्कोप(KECK TELESCOPE)

                                                      "तीस मीटर के टेलिस्कोप"(THIRTY METER TELESCOPE-TMT ) का निर्माण कार्य जब खतम हो जायेगा तब यह टेलिस्कोप  "केक टेलिस्कोप(KECK TELESCOPE)" से 10  गुना ज्यादा  प्रकाश को इकठ्ठा करने में सक्षम होगा , और
                                                         
हबल टेलिस्कोप(HUBBLE TELESCOPE)


                                                       "हबल टेलिस्कोप(HUBBLE TELESCOPE) से 144 गुना ज्यादा प्रकाश को इकठ्ठा करने में सक्षम होगा। 


                                                 यह वास्तव में  "तीस मीटर के टेलिस्कोप"(THIRTY METER TELESCOPE-TMT ) को अलग अलग सेट करने के लिए कम से कम  है : यह वर्त्तमान में उपयोग में आने वाले टेलिस्कोप के "DSLR (DIFFRACTION-LIMITED SPATIAL RESOLUTION)" से भी अधिक है। टेलिस्कोप में "DSLR (DIFFRACTION-LIMITED SPATIAL RESOLUTION)" वस्तुओ मेसे आने वाली रौशनी को अलग करता है जो की  ज्यादा अंतर होने पर एक साथ  बंद हो जाते है। 

केक टेलिस्कोप(KECK TELESCOPE)


                                              यह "केक टेलिस्कोप(KECK TELESCOPE)" को अपने तीन पहलुओं से हरा देगा , और "हबल टेलिस्कोप(HUBBLE TELESCOPE) के "DSLR (DIFFRACTION-LIMITED SPATIAL RESOLUTION)" की एक निश्चित वेवलेंथ पे यह 10 पहलू से आगे होगा । 

हबल टेलिस्कोप(HUBBLE TELESCOPE)

सुपर टेलीस्कोप का भविष्य  : -

                                                                 ब्रम्हांड विज्ञान और खगोलविज्ञानं में सबसे अधिक दबाव वाले सवालों की जाँच यह "तीस मीटर  टेलिस्कोप"(THIRTY METER TELESCOPE-TMT )" करेगा। क्योकि यह आकाशगंगा और नजदीकी  आकाशगंगाओ में  खोज करने में  शक्षम है , जिसमे हम निचे  दिए गए मुद्दों की खोज को शामिल कर सकते है :

→  काले पदार्थ की प्रकृति(NATURE OF DARK  MATTER)

→  आकाशगंगा  की उत्त्पति और प्रारंभिक आकाशगंगाओ की प्रकृति (GALAXY FORMATION               AND   NATURE OF EARLY     GALAXIES) 

→  ग्रहो और सितारों के जन्म और प्रारंभिक जीवन (BIRTHS AND EARLY  LIVES OF PLANETS         AND STARS)

→  न्यूट्रॉन  सितारों और अन्य चरम वस्तुओ की भौतिकी (PHYSICS NEUTRON STARS AND                 OTHER EXTREME        OBJECTS)

→  विशाल  ब्लैक होल (MASSIVE BLACK HOLES)

→  समयक्षेत्र विज्ञानं : गामा किरण विस्फोट और सुपरनोवा (GAMMA RAY BURSTS  AND                      SUPERNOVA )

                                                                         सुपर टेलिस्कोप  के भूतकाल ने पहले ही  हमारे लिए ब्रम्हांड को खोला है। हबल स्पेस टेलिस्कोप ने हमें दिखाया की ब्रम्हांड कितना बड़ा  है यह , हमे आकाशगंगाओ के सबूतों के साथ प्रदान किया  है और हमारे जैसे अरबो सूरज ब्रम्हांड में मौजूद है  उसके सौर मंडल की भी जानकारी दी है। और "माईक्रोवेव अनिस्ट्रोपी  जाँच (MICROWAVE ANISOTROPY PROB -MAP )" अंतरिक्ष यान ने हमें यह समजने में मदद की है की ब्रम्हांड 13.4 अरब वर्ष पुराण है।  
                                                               
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Saturday 6 May 2017

बायोडिग्रेडेबल इलेक्ट्रॉनिक्स के युग में आपका स्वागत है::!::_-+^ ~

शोधकर्ताओ ने  सिर्फ  बहोत हलके  पहनने योग्य तकनीक को विकसित किया  है जो की विनेगर(vinegar) में  घुल-मिल जायेगा।  

                                                                   

                                                                          

                                                स्टैफोर्ड यूनिवर्सिटी (stanford university) " के शोधकर्ताओंने एक पहनने योग्य इलेक्ट्रॉनिक  उपकरण  बनाया  है , जो पूरी तरह से   विनेगर(vinegar) में  घुल-मिल जायेगा  या  विनेगर में विघटित हो जायेगा। इस युग में जहा  अविश्वसनीय नए इलेक्ट्रॉनिक  उपकरण  हर समय प्रतीत होते है , और  छोड़े गए उपकरणों से  हर साल लाखो  टन इलेक्ट्रॉनिक कचरे की बढ़ोतरीती  होती है , जिसकी बजह से  शोधकर्ताओं  यह शोध का दबाव महसूस हुआ था।

डॉ.ज़हेनन बाओ(Zhenan Bao) , बायोडिग्रेडेबल इलेक्ट्रॉनिक्स मटीरियल के शंशोधक 



                                                           और  जब हम किसी पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को छोड़ देते हे या कबाड़ में  डाल देते है तब  उन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में  समाविष्ट आपकी जानकारी गोपनीयता पे बहोत ही बड़े प्रश्न खड़े करती है , पर अब इस शोध की मदद से यह  समस्या  का भी निराकरण आ  गया है।, क्योकि आपका पुराना उपकरण  जब फिनोल में विघटित या  घुल मिल जायेगा तो इस समस्या का भी निराकरण आ जायेगा। 


 "

                                                                                         
                                                                                      विघटनकारी पॉलीमर में से बनाये गए उपकरण अबतक के सबसे पतले , सबसे हलके उपकरणों में से एक है। 






                                          शोधकर्ताओंने टैटू की स्याही से निकाले गए अणु का उपयोग  करके बायोडिग्रेडेबल सेमीकंडक्टर(biodegradable semiconductor)  को संश्लेषित(synthesized)  किया और  फाइबर  को पतली फिल्म में बुनाई(weaving)  करके आधार को तैयार किया गया था , और उस संरचना(structure)  मे इलेक्ट्रॉनिक्स को  अंतःस्थापित(embedding) किया जाता है , और जब इसे विनेगर में या फिर किसी भी काम एसिडिक प्रवाही में रखा जाये तो , वह चीज (इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ) को 30 दिनों  के भीतर ही पिघला देता है। 



                                                                                        आखिरकार , यह तकनीक सवेदनशील(sensitive) डिजिटल जानकारी संग्रहित करने के लिए आदर्श होगी जो कि जल्दी और आसानी से नस्ट हो सके और गोपनीय(private)  रखी जा सके। यह टेक्नोलॉजी बायोलॉजिकल  सेन्सर्स(sensors) के लिए एक दम सही है और इसका उपयोग प्रत्यारोपण(implantable) चिकित्सा उपकरणों(medical device)  में भी किया जा सकता है।  संशोधनकर्ताओ ने  उपकरण का परीक्षण चूहों  में  ह्र्दय पेशी की कोशिकाओं के नजदीक किया था , और वे मर नहीं गए । हालाँकि यह उपकरण अभीभी मनुष्यो में उपयोग के लिए सुरक्षित नहीं है , इसलिए शायद इसका उपयोग अभी थोड़ी दूर है। 



              
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विश्व के सबसे बड़े पक्षी की पंखोंका फैलाव 24 फुट था !!

पेलागोर्निस सान्द्रेसी नामक उस पक्षी का वजन 80 kg  भी ज्यादा था !! पेलागोर्निस सान्द्रेसी                                       ...